स्क्रीन रीडर

जस्टिस मनमोहन के विषय में

मॉडर्न स्कूल, हिंदू कॉलेज और कैंपस लॉ सेंटर के पूर्व छात्र, जस्टिस मनमोहन को 1987 में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में एक वकील के रूप में नामांकित किया गया था। आप ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली के उच्च न्यायालय में विभिन्न सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, कराधान, मध्यस्थता और ट्रेडमार्क मुकदमों में प्रैक्टिस की।

आप वर्ष 2003 में एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित हुए और दाभोल पावर कंपनी, हैदराबाद निज़ाम के ज्वैलरी ट्रस्ट मामले, क्लेरिजेस होटल विवाद सहित विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों का प्रतिनिधित्व किया और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विभिन्न सेमिनारों और सम्मेलनों में भी भाग लिया।

वर्ष 2008 में आप दिल्ली उच्च न्यायालय के एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए और वर्ष 2009 में एक स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए – आपने पुरानी और गंभीर चिकित्सा स्थिति के मामले में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए राज्य से समर्थन प्राप्त करने के अधिकारों से संबंधित ( मोहम्मद अहमद बनाम यूओआई और अन्य, 2014 SCC On Line Del 1508; W.P.(C) 8445/2014 शीर्षक मोहम्मद कलीम बनाम ईएसआईसी और अन्य) मामलों मेँ कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। साथ ही साथ प्रत्येक बच्चे को कोविड -19 महामारी के दौरान डिजिटल शिक्षा का उपयोग करने का अधिकार और मानव तस्करी के शिकार बच्चों के बचाव और पुनर्वास से निपटने के लिए एक सार्वभौमिक प्रशासनिक प्रोटोकॉल का निर्माण किया।

आपने ((UTV Software Communication Ltd. and Ors. Vs. 1337X.TO and Ors., 2019 SCC OnLine Del 8002) पर उनके निर्णय; ट्रेडमार्क मामलों में नुकसान की गणना करने के लिए फॉर्मूला (Koninlijke PhilipsN.V. &Anr. Vs. Amazestore &Ors., 2019 SCC On Line Del 8198) जैसे महत्वपूर्ण निर्णय दिये और बच्चों को कानूनी दस्तावेजों में अपनी मां के उपनाम का उपयोग करने की अनुमति देना इसका अग्रणी उदाहरण माना जाता है।