दस साल से कोर्ट में लड़ रहे थे पति-पत्नी, डीएलएसए ने तीन माह में कराया समझौता
Fri Aug 25 19:53:44 IST 2017

जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : न्याय की उम्मीद लिए कोर्ट पहुंचने वाले कई लोगों को शायद इसलिए भी इंसाफ नहीं मिल पाता है, क्योंकि उन्हें वकीलों के द्वारा सही सलाह नहीं मिल पाती। ऐसा ही एक दंपति दस साल से कोर्ट में लड़ रहा था, मगर दिल्ली सेवा न्याय प्राधिकरण (डीएलएसए) ने तीन माह में ही समझौता करा दिया।
लक्ष्मी नगर में रहने वाली एक महिला ने अपने पति के खिलाफ सबसे पहले महिला सेल में दहेज के लिए सताने का मुकदमा दर्ज करवाया। पूर्वी दिल्ली के कृष्णा नगर और जगतपुरी थानों में एफआइआर भी हुईं। जब मामला फैमिली कोर्ट में पहुंचा तो महिला के निजी वकील ने हर एक पेशी पर उसके पति पर नया केस डालने के लिए उसे प्रेरित किया। महिला केस डालती गई। निजी वकील ने तब तक महिला का केस लड़ा जब तक उसके पास पैसे रहे, जब पैसे खत्म हो गए तो वकील ने केस लड़ने से इन्कार कर दिया। महिला ने दस साल तक केस लड़ा, लेकिन नतीजा जीरो रहा। अलबत्ता, महिला हर हाल में न्याय चाहती थी। ऐसे में किसी व्यक्ति की सलाह पर वह दिल्ली सेवा न्याय प्राधिकरण (डीएलएसए) पूर्वी दिल्ली की शरण में पहुंची। प्राधिकरण के वकील ने 10 साल से कोर्ट में लड़ रहे दंपति के बीच तीन महीने में समझौता करवा दिया।
डीएलएसए के वकील उमेश गुप्ता ने बताया कि महिला का 2006 में प्रेम विवाह हुआ था। शादी के दो साल के अंदर ही पति पत्नी के बीच एक-दूसरे के चरित्र पर शक के चलते कई तरह के मतभेद सामने आने लगे थे। इसके बाद विवाद गहराता चला गया और फिर शुरू हुआ एक के बाद एक केस दर्ज करने का सिलसिला। महिला ने अपने पति के खिलाफ 2007 कोर्ट में कई केस किए, उसके पति ने 2008 में तलाक के लिए मुकदमा दायर किया। महिला ब्यूटी पार्लर चलाती थी। पति एक कॉलेज में लैब असिस्टेंट है। दस साल से लंबित इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद अंतिम फैसला फैमिली कोर्ट ईस्ट के ¨प्रसिपल जज की ओर से आना बाकी था, लेकिन पैसों कमी के कारण महिला केस नहीं लड़ सकी। महिला ने डीएलएसए ईस्ट की सचिव भवानी शर्मा से संपर्क किया। डीएलएसए की ओर से तीन मई 2017 को व उमेश गुप्ता को नियुक्त किया गया। उमेश गुप्ता ने दोनों पक्षों को समझाया कि या तो वह दोनों फिर से एक हो जाएं, या लड़ने के बजाय सम्मानपूर्वक अलग हो जाएं। इससे समय और पैसे की बर्बादी नहीं होगी। ऐसे में 12 लाख रुपये पर अटका मामला, महज तीन लाख के समझौते पर खत्म हुआ।